भारत में “विवाह समारोह ओर पंजीकरण” की वैधानिकता

13-05-2024

भारत में “विवाह समारोह ओर पंजीकरण” की वैधानिकता

 

GS-1: भारतीय समाज

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

13/05/2024

स्रोत: द हिंदू

सन्दर्भ:

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि अपेक्षित वैवाहिक समारोहों के अभाव में हिंदू विवाह को वैध नहीं माना जा सकता है।

  • सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय “डॉली रानी बनाम मनीष कुमार चंचल मामले” को आधार मानते हुए दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह को वैधता प्रदान करने के लिए विवाह के पंजीकरण एवं समारोह की अनिवार्यता पर जोर दिया है।

डॉली रानी बनाम मनीष कुमार चंचल मामला क्या है?

  • यह मामला एक ऐसे कपल से संबंधित है जिसने 07 मार्च 2021 को विवाह किया और दावा किया कि 07 जुलाई 2021 को उनका विवाह संपन्न हुआ जिसका उन्होंने "विवाह प्रमाण-पत्र" भी प्राप्त किया था, लेकिन इस कपल का विवाह समारोह हिंदू पद्धति एवं रीति-रिवाजों के अनुसार 25 अक्टूबर 2022 को संपन्न होना निर्धारित किया गया था, जो पूरा नहीं हो पाया।
  • कतिपय मतभेद के चलते प्रतिवादी ने विवाह विच्छेद के लिए याचिका दायर करके न्यायालय में अपील की  तो न्यायालय ने घोषणा की कि 07 जुलाई 2021 को उनका विवाह विधि की दृष्टि में वैध नहीं था तथा जारी किया गया विवाह प्रमाण-पत्र भी वैध नहीं हो सकता। कोर्ट ने यह घोषणा पक्षकारों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए दिया है।
  • पक्षकारों ने स्वीकार किया कि विवाह, किसी भी वैवाहिक रस्मों, संस्कारों और रीति-रिवाजों के अनुसार नहीं किया गया था और विवाह प्रमाण-पत्र अवैध तरीके से प्राप्त किया गया है।

वैवाहिक समारोह के बारे में:

  • वैवाहिक समारोह से अभिप्राय विवाह के संपन्न होने में अनिवार्य तौर पर आयोजित किए गए अपेक्षित एवं पारंपरिक रीति-रिवाजों से है।
  • भारत में, विवाह हेतु अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग रीति-रिवाजों का प्रचलन है। हिंदू धर्म में, विवाह के संपन्न होने में ‘सप्तपदी’ एवं ‘कन्यादान’ का विशेष महत्त्व है क्योंकि कन्यादान एवं सप्तपदी (सात वचन) हिंदू विवाह को पवित्र बनाते हैं।
  • ईसाई धर्म में, स्थानीय रीति-रिवाजों के आधार पर चर्च में आयोजित एक समारोह को वैध विवाह के रूप में मान्यता दी जाती है।
  • मुस्लिम धर्म में, एक वैध विवाह के लिए दोनों पक्षों की सहमति, मुखर अनुमति देना तथा निकाहनामे पर हस्ताक्षर करना आवश्यक माना जाता है।
  • इसमें भी विवाह की संपन्नता हेतु विभिन्न धर्मों के लिए विशिष्ट व्यक्तिगत विधियों एवं रीति-रिवाजों का प्रावधान किया गया है।
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (SMA) एक धर्मनिरपेक्ष विकल्प प्रदान करता है। यह अधिनियम विभिन्न धर्मों के जोड़ों को धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों के बगैर नागरिक प्रक्रिया के माध्यम से विवाह करने में सक्षम बनाता है।

वैध विवाह क्या है?

हिंदू विवाह अधिनियम 1955(HMA ): यह अधिनियम, निम्नलिखित धाराओं के अंतर्गत वैध विवाह हेतु आवश्यक शर्तें निर्धारित करता है:

धारा 5

विवाह के समय कोई भी पक्ष नहीं:

  • मस्तिष्क की अस्वस्थता के परिणामस्वरूप इसके लिये वैध सहमति देने में असमर्थ है, या
  • वैध सहमति देने में सक्षम होते हुए भी, इस प्रकार के या इस सीमा तक मानसिक विकार से पीड़ित हो कि विवाह एवं बच्चे पैदा करने के लिये अयोग्य हो, या
  • बार-बार पागल व्यक्ति जैसा व्यवहार करता हो।
  • विवाह के समय दूल्हे की उम्र 21 वर्ष और दुल्हन की उम्र 18 वर्ष पूरी हो चुकी है।
  • पक्षकार निषिद्ध संबंध की डिग्री के दायरे में नहीं होने चाहिए, जब तक कि उनमें से प्रत्येक को नियंत्रित करने वाली प्रथा या रूढ़ी दोनों के मध्य विवाह की अनुमति न देते हों,
  • पक्षकार एक-दूसरे के सपिंड नहीं होना चाहिए, जब तक कि उनमें से प्रत्येक को नियंत्रित करने वाली रूढ़ी या प्रथा दोनों के मध्य विवाह की अनुमति न देते हों।

हिंदू विवाह के लिए समारोह:

धारा 7

  • विवाह वैध माना जाता है, यदि यह HMA की धारा 7 में उल्लिखित प्रत्येक पक्ष या उनमें से किसी एक के पारंपरिक समारोह एवं रीति-रिवाजों के अनुसार हिंदू कपल के मध्य किया जाता है।
  • एक हिंदू विवाह किसी भी पक्ष के पारंपरिक संस्कारों एवं समारोहों के अनुसार संपन्न किया जा सकता है।
  • जहाँ ऐसे संस्कारों एवं समारोहों में सप्तपदी (अर्थात्, दूल्हे एवं दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के सामने संयुक्त रूप से सात पग उठाना) सम्मिलित है, सातवाँ पग उठाने पर विवाह पूर्ण एवं बाध्यकारी हो जाता है।
  • प्रथागत समारोह एवं रीति-रिवाज़ों का अर्थ है कि विवाह, समुदाय के रीति-रिवाज़ों के अनुसार संपन्न किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, एक समुदाय केवल मालाओं के आदान-प्रदान की व्यवस्था कर सकता है, जबकि दूसरे को अधिक विस्तृत यज्ञ अनुष्ठान की आवश्यकता हो सकती है। अधिनियम इन मतभेदों को ध्यान में रखता है।

भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872:

  • इस अधिनियम की धारा 4 से 9 तक विवाह को वैध मानने के लिये आवश्यक शर्तें निर्दिष्ट करती हैं।
  • धारा 3 में परिभाषित अनुसार दोनों पक्षों को ईसाई होना चाहिये, या उनमें से कम-से-कम एक को ईसाई होना चाहिए।
  • विवाह समारोह, अधिनियम की धारा 5 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार एक अधिकृत व्यक्ति द्वारा आयोजित किया जाना चाहिए।
  • राज्य सरकारों को इस अधिनियम के अंतर्गत विशिष्ट व्यक्तियों को विवाह संपन्न कराने के लिये अनुज्ञप्ति जारी करने एवं वापस लेने का अधिकार है।

मुस्लिम निकाह:

एक वैध मुस्लिम निकाह की अनिवार्यताएँ हैं:

  • पक्षकारों के पास निकाह करने की योग्यता होनी चाहिये।
  • प्रस्ताव (इज़ाब) एवं स्वीकृति (क़बूल)।
  • दोनों पक्षों की स्वतंत्र सहमति।
  • एक निश्चित राशि (मेहर)।
  • कोई विधिक बाधा नहीं होना चाहिए।
  • साक्षी (सुन्नी - प्रस्ताव और स्वीकृति, दो पुरुषों या एक पुरुष एवं दो महिला साक्षियों की उपस्थिति में की जानी चाहिये, जो समझदार, वयस्क और मुस्लिम हों, शिया - निकाह के समय साक्षी आवश्यक नहीं हैं।)

विवाह के पंजीकरण से संबंधित प्रावधान:

हिंदू विवाह हेतु विधि:

  • हिंदू विवाह अधिनियम 1955(HMA) की धारा 8(1) राज्य सरकारों को विवाह के पंजीकरण के उद्देश्य से नियम बनाने में सक्षम बनाती है।
  • धारा 8(2) में उल्लेख किया गया है कि उप-धारा (1) में चाहे कुछ भी कहा गया हो, राज्य सरकार, यदि आवश्यक या उचित समझे, पूरे राज्य के भीतर या विशिष्ट क्षेत्र में या तो सार्वभौमिक रूप से या विशिष्ट मामलों के लिये उप-धारा (1) में उल्लिखित विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य कर सकती है।
  • ऐसे मामलों में, जहाँ ऐसे निर्देश जारी किये जाते हैं, जो कोई भी इस संबंध में स्थापित, ऐसे किसी भी विनियमन का उल्लंघन करता है, उसे पच्चीस रुपए तक का ज़ुर्माना भरना पड़ सकता है।

मुस्लिम विवाह हेतु विधि:

  • मुस्लिमों में निकाह का पंजीकरण अनिवार्य एवं बाध्यकारी है, क्योंकि मुस्लिम निकाह को एक नागरिक संविदा के रूप में माना जाता है।
  • इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद मुस्लिमों के मध्य होने वाले प्रत्येक निकाह को निकाह- -समारोह के समापन से तीस दिनों के अंदर, इसके बाद दिये गए प्रावधान के अनुसार पंजीकृत किया जाएगा।
  • निकाहनामा मुस्लिम निकाहों में एक प्रकार का विधिक दस्तावेज़ है, जिसमें निकाह की आवश्यक शर्तें/विवरण शामिल होते हैं।

ईसाई विवाह हेतु विधि:

  • धारा 27-37, भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 का भाग IV है, जो विशेष रूप से भारतीय ईसाइयों के मध्य, इस अधिनियम के अंतर्गत आयोजित विवाहों के लिये पंजीकरण प्रक्रिया को संबोधित करती है।
  • विवाहों को निर्धारित नियमों का पालन करना चाहिये तथा वे सामान्य तौर पर इंग्लैंड के चर्च से संबद्ध पादरी द्वारा संचालित किये जाते हैं।

विवाह पंजीकरण से संबंधित निहितार्थ:

विधिक मान्यता: हालाँकि अधिकांश मामलों में विवाह का पंजीकरण, इसकी वैधता के लिये अनिवार्य नहीं है, लेकिन यह विवाह होने के निर्णायक साक्ष्य के रूप में कार्य करता है। पंजीकृत विवाह प्रमाण-पत्र के बिना, विवाह के अस्तित्त्व को सिद्ध करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, विशेषकर विधिक कार्यवाही में।

  • अधिकार एवं लाभ: सरकार द्वारा प्रदान किये गए विभिन्न अधिकारों एवं लाभों, जैसे कि विरासत के अधिकार, जीवनसाथी के होने का लाभ एवं सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ उठाने के लिये अक्सर एक पंजीकृत विवाह प्रमाण-पत्र की आवश्यकता होती है। इसलिये पंजीकरण न कराने पर इन अधिकारों से मना किया जा सकता है।
  • विधिक कार्यवाही: वैवाहिक स्थिति, संपत्ति के अधिकार या विवाह विच्छेद से संबंधित विवादों के मामले में, एक पंजीकृत विवाह प्रमाण-पत्र विवाह के स्पष्ट दस्तावेज़ प्रदान करके विधिक कार्यवाही को सरल बना सकता है। पंजीकरण न कराने से ऐसे मामले जटिल हो सकते हैं और विधिक प्रक्रियाएँ लंबी हो सकती हैं।
  • वीज़ा एवं आव्रजन: कुछ मामलों में, वीज़ा आवेदन एवं आव्रजन उद्देश्यों के लिये एक पंजीकृत विवाह प्रमाण-पत्र की आवश्यकता हो सकती है, विशेष रूप से दूसरे देश में अपने सहयोगियों के साथ जुड़ने के इच्छुक पति-पत्नी के लिये। इसलिये पंजीकरण न होने से ऐसी प्रक्रियाओं में बाधा आ सकती है।

विवाह के पंजीकरण से संबंधित महत्त्वपूर्ण मामले:

सीमा बनाम अश्वनी कुमार (2007):

  • इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत, विवाह का पंजीकरण पक्षकारों के विवेक पर छोड़ दिया गया है, वे या तो उप-रजिस्ट्रार के समक्ष विवाह को संपन्न कर सकते हैं या प्रथागत मान्यताओं के अनुसार विवाह समारोह करने के बाद इसे पंजीकृत कर सकते हैं।
  • न्यायमूर्ति महमूद ने मुस्लिम निकाह की प्रकृति को एक संस्कार के बजाय विशुद्ध रूप से एक नागरिक संविदा के रूप में रखा।

निष्कर्ष:

हालिया निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने विधि की दृष्टि में विवाह की वैधता सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग धर्मों में विवाह के दौरान आयोजित विभिन्न रस्मों, पद्धतियों और रीति-रिवाज़ों के पालन एवं उनके महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

कोर्ट के अनुसार, उचित विधिक एवं धार्मिक ढाँचे के अंतर्गत विवाह का पंजीकरण एवं समारोह अनिवार्यता आवश्यक एवं महत्वपूर्ण हैं।

 

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारत में विवाह समारोह ओर पंजीकरण की वैधानिकता का परीक्षण कीजिए