
तेलंगाना में चालुक्य कालीन मंदिर और शिलालेख मिले
तेलंगाना में चालुक्य कालीन मंदिर और शिलालेख मिले
GS-1: दक्षिण भारत का प्राचीन इतिहास
(यूपीएससी/राज्य पीएससी)
प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:
मुदिमानिक्यम गांव, तेलंगाना, बादामी के चालुक्य, बादामी के चालुक्य मंदिरों की वास्तु कला।
मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:
बादामी के चालुक्य वंश के बारे में, बादामी के चालुक्य मंदिरों की वास्तु कला शैली के बारे में, बादामी के चालुक्य वंश के राजाओं की सूची।
24/02/2024
चर्चा में क्यों:
हाल ही में,पुरातत्ववेत्ताओं ने तेलंगाना स्थित मुदिमानिक्यम गांव में बादामी चालुक्य वंश के दो मंदिरों और लेबल शिलालेखों को खोजा है।
- इन मंदिरों को स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने के रूप में देखा जा रहा है।
- उल्लेखनीय है कि मुदिमानिक्यम गांव तेलंगाना के नलगोंडा जिले में कृष्णा नदी के किनारे स्थित है।
खोजे गए "मंदिरों" के बारे में:
- पुरातत्वविदों के अनुसार, ये दोनों मंदिर 543 ईस्वी और 750 ईस्वी के बीच के हैं और लगभग 1,300- 1,500 वर्ष पुराने हैं।
- ये मंदिर असाधारण हैं, क्योंकि इनके निर्माण में प्राचीन बादामी चालुक्य एवं कदंब नगर की स्थापत्य शैली मिला-जुला प्रभाव दिखाई देता है।
- तेलंगाना में इन मंदिरों को स्पष्ट वास्तुकला का एकमात्र उदाहरण माना जा सकता है।
- ये मंदिर तेलंगाना में बादामी के चालुक्य काल के साक्ष्य के रूप में काम कर सकते हैं।
दोनों मंदिरों की विशेष खासियत:
- एक मंदिर के गर्भगृह में सिर्फ एक पनवत्तम शेष है तथा दूसरे में प्रभु श्री विष्णु की प्रतिमा है सुरक्षित और विराजमान है।
खोजे गए "लेबल शिलालेख" के बारे में:
- पुरातत्वविदों के अनुसार, लेबल शिलालेख 8वीं या 9वीं शताब्दी ईस्वी के हैं और लगभग 1,200 साल पुराने हैं।
- लेबल शिलालेख को ‘गंडालोरानरू’ कहा जाता है तथा इसका लेख अभी भी एक रहस्य बना हुआ है। मतलब इन शिला लेखों पर लिखे लेखों के अर्थ को अभी तक स्पष्ट नहीं किया जा सका है।
- गौरतलब है कि कन्नड़ में 'गंडा' का अर्थ 'नायक' भी होता है, इसलिए यह संभवतः एक ‘वीर’ उपाधि भी हो सकती है।
- लेबल शिलालेख गांव में पांच मंदिरों के समूह के एक स्तंभ पर लिखा गया है।
- पांच मंदिरों के समूह को ‘पंचकुट’ के नाम से जाना जाता है।
- ये भी बादामी चालुक्य काल के हैं।
- उपर्युक्त तथ्यों स्पष्ट है कि इस दौरान तेलंगाना क्षेत्र में बादामी चालुक्यों का शासन रहा है।
बादामी के चालुक्य मंदिरों की वास्तु कला शैली के बारे में:
- चालुक्य कला और वास्तुकला के प्रबल समर्थक थे।
- दक्कन वास्तुकला के इतिहास में, बादामी के प्रारंभिक चालुक्य एक नई वास्तुकला शैली के विकास के लिए जिम्मेदार थे, जिसे "चालुक्य शैली" या "वेसर" शैली के नाम से जाना जाता है।
- इस शैली में विकसित स्मारक नागर (उत्तर भारतीय) और द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) वास्तुकला का एक सामंजस्यपूर्ण मिश्रण हैं।
- विक्रमादित्य ने मंदिरों के निर्माण के लिए कांचीपुरम से कई मूर्तिकारों को अपने साम्राज्य में आयात किया।
- मेलागिट्टी शिवालय और चट्टानों को काटकर बनाए गए चार कमरों की एक श्रृंखला बादामी के मंदिरों में से एक है।
- चालुक्य गुफा मंदिर अजंता, एलोरा और नासिक में पाए जाते हैं। वे प्रकृति में अखंड हैं और ढलानदार पहाड़ियों में खोदे गए हैं।
- वे शैली और तकनीक में बौद्ध हैं और ब्राह्मणवादी प्रतिबद्धता रखते हैं।
- प्रारंभ में, चालुक्य मंदिरों की छतें समतल या थोड़ी ढलान वाली थीं।
- बाद के चरणों में एक टावर जैसा निर्माण (विमान) दिखाया गया है।
- एहोल में दुर्गा मंदिर घोड़े की नाल के आकार के आसन पर बनाया गया है, जो बौद्ध चैत्य से प्रेरित था।
- पत्तदकल कुछ सबसे शानदार वास्तुशिल्प विशेषताओं के साथ एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
- चालुइकन राजा न केवल मंदिरों के निर्माण में रुचि रखते थे बल्कि चित्रकला की कला की उन्नति के लिए सहायता प्रदान करने में भी रुचि रखते थे।
- अजंता गुफा नंबर एक की कुछ कलाकृतियाँ इस बात की पुरजोर पुष्टि करती हैं।
बादामी के चालुक्य वंश के बारे में:
- बादामी के चालुक्य वंश का वास्तविक संस्थापक पुलकेशिन प्रथम था।
- इस समय ब्राह्मण धर्म उन्नति पर था।
- चालुक्य नरेश विष्णु अथवा शिव के उपासक थे।
- ये धार्मिक रूप से सहिष्णु थे तथा जैनियों एवं बौद्धों का आदर करते थे।
- इन्होंने इन देवताओं की पूजा के लिये पट्टकल, बादामी आदि स्थानों पर भव्य मंदिर निर्मित किए।
- इस वंश में मंदिर सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के विशिष्ट केंद्र हुआ करते थे।
- ऐहोले, मेगृति और बादामी के मंदिरों से दक्षिण के मंदिरों का इतिहास प्रारंभ होता है।
- पट्टकल के मंदिरों में इनके विकास का दूसरा चरण परिलक्षित होता है।
- इन मंदिरों में मूर्तियों की संख्या में वृद्धि के साथ ही इनकी शैली का भी विकास होता है।
- ठोस चट्टानों को काटकर मंदिरों का निर्माण करने की कला में अद्भुत कुशलता दिखलाई पड़ती है।
- श्रीगुंडन् अनिवारिताचारि ने लोकेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया।
बादामी के चालुक्य वंश के राजाओं की सूची:
पुलकेशिन प्रथम (543 – 566 ई.):
- पुलकेशिन प्रथम चालुक्य वंश का वास्तविक संस्थापक था।
- पुलकेशिन नाम का अर्थ संभवतः "महान शेर" है।
कीर्तिवर्मन प्रथम (566 - 597 ई.):
- "पुलकेशिन प्रथम" के पुत्र कीर्तिवर्मन प्रथम ने बनवासी कदंबों, बस्तर नालों और कोंकण मौर्यों के खिलाफ युद्ध लड़कर पैतृक साम्राज्य का विस्तार किया।
- वह चालुक्य वंश का पहला संप्रभु राजा था।
मंगलेसा (597 – 609 ई.):
- मंगलेश ने भारत के कर्नाटक में वातापी के चालुक्य वंश के राजा के रूप में 597 से 609 ईस्वी तक शासन किया।
- वह एक वैष्णव थे जिन्होंने अपने भाई कीर्तिवर्मन प्रथम के शासनकाल के दौरान एक विष्णु मंदिर बनवाया था।
पुलकेशिन द्वितीय (609 – 642 ई.):
- पुलकेशिन द्वितीय चालुक्य वंश का एक महान राजा था।
- वह सोने के सिक्के जारी करने वाले पहले दक्षिण भारतीय राजा था।
- उसने परमेश्वर, पृथ्वीवल्लभ और सत्याश्रय की उपाधियाँ धारण कीं।
- उसने 630 ई. में हर्ष को नर्मदा के तट पर हराया था।
विक्रमादित्य प्रथम (644 – 681 ई.):
- विक्रमादित्य प्रथम ने "महाराजाधिराज (महान राजाओं के राजा), " "राजाधिराज (राजाओं के राजा), " "परमेश्वर (सर्वोच्च भगवान)," और "भट्टारक (महान स्वामी)" जैसी उपाधियाँ धारण कीं।
विनयादित्य द्वितीय (681- 693 ई.):
- विनयादित्य ने चालुक्य साम्राज्य पर 681 से 696 ई. तक शासन किया।
कीर्तिवर्मन द्वितीय (744 – 753 ई.):
- कीर्तिवर्मन द्वितीय, जिन्हें रहप्पा के नाम से भी जाना जाता है, बादामी चालुक्य वंश के अंतिम राजा थे।
निष्कर्ष:
यह खोज ऐतिहासिक तौर पर अति महत्वपूर्ण है क्यों ये मंदिर दक्षिण भारत की प्राचीन समृद्धता तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करते हैं।
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मुख्य परीक्षा प्रश्न:
बादामी के चालुक्य मंदिरों की वास्तु कला शैली दक्षिण भारत में एक बेजोड़ नमूने को प्रदर्शित करती है। विवेचना कीजिए।