बहुभाषावाद का महत्त्व

बहुभाषावाद का महत्त्व

प्रिलिम्स परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

'हिंदी @ यूएन' परियोजना 2018, भारतीय भाषाएँ, बहुभाषावाद, आठवीं अनुसूची

मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

GS-2: भारतीय भाषाओं का संरक्षण और संवर्द्धन हेतु प्रयास, भाषावाद का महत्त्व

संदर्भ:

"बहुभाषावाद" एक महत्वपूर्ण विषय है जिसमें समाज, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार किया जाता है। यह एक सिद्धांत है जो कहता है कि एक समाज में विभिन्न भाषाओं और सांस्कृतिक समृद्धियों को समान रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए।

बहुभाषावाद:

  • "बहुभाषावाद" एक सिद्धांत है जिसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न भाषाओं और सांस्कृतिक समृद्धियों को समान रूप से सम्मानित करना है। यह विश्व में विभिन्न समुदायों और भाषाओं के लोगों को उनकी भाषा और सांस्कृतिक पहचान को समझने और सम्मानित करने के लिए उत्साहित करता है।
  • भारत का बहुभाषावाद न केवल संख्या का मामला है, बल्कि संस्कृति, पहचान और इतिहास का भी मामला है। भारत की भाषाएँ इसके विविध और बहुलवादी समाज को दर्शाती हैं, जहाँ विभिन्न धर्मों, नस्लों, जातियों और वर्गों के लोग एक साथ रहते हैं और बातचीत करते हैं।
  • बहुभाषावाद को अपनाने के महत्त्व का एक प्रमुख उदाहरण भारत है, जहाँ भाषाओं और लिपियों की प्रचुरता है।

बहुभाषावाद का महत्त्व:

  • सांस्कृतिक धरोहर: बहुभाषावाद एक समाज में विभिन्न सांस्कृतिक समृद्धियों को समझने और महत्वपूर्ण रूप से सम्मानित करने का एक माध्यम है। यह लोगों को उनके धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों को महत्वपूर्ण मानता है।
  • भाषाओं का सम्मान: बहुभाषावाद उन सभी भाषाओं को समान रूप से महत्वपूर्ण मानता है जो एक समुदाय में बोली जाती हैं। यह विभिन्न भाषाओं के बोलने वाले लोगों को उनके भाषाओं का सम्मान और अध्ययन करने का अवसर प्रदान करता है।
  • सामाजिक समृद्धि: बहुभाषावाद सामाजिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विभिन्न समुदायों के लोगों को एक साथ जीने और काम करने की क्षमता प्रदान करता है। यह समाज में विशेष रूप से असमानता और भेदभाव को कम करने का एक माध्यम हो सकता है।
  • राजनीतिक समृद्धि: बहुभाषावाद एक समाज की राजनीतिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विभिन्न समुदायों को सम्मान और समान अधिकारों की प्राप्ति का अवसर प्रदान कर सकता है।
  • शिक्षा: बहुभाषावाद शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह विभिन्न भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है और विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा लेने का अवसर देता है।
  • बहुभाषावाद स्मृति, ध्यान, समस्या-समाधान और रचनात्मकता जैसी संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
  • शोध से पता चला है कि द्विभाषी और बहुभाषी लोगों के पास बेहतर कार्यकारी कार्यक्षमता होती है, वे मानसिक प्रक्रियाओं की योजना बनाने, उन्हें व्यवस्थित और नियंत्रित करने के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। शोध के अनुसार, मानसिक प्रक्रियाएँ योजना निर्माण, व्यवस्था और प्रबंधन से संबंधित कार्यों का कार्यान्वयन क्षेत्र है, जिसमें द्विभाषी तथा बहुभाषी व्यक्ति बेहतर प्रगति कर सकते हैं।
  • बहुभाषावाद सहानुभूति, परिप्रेक्ष्य और अंतर-सांस्कृतिक क्षमता जैसे सामाजिक एवं भावनात्मक कौशल में भी सुधार कर सकता है।
  • विभिन्न भाषाएँ सीखकर लोग विभिन्न संस्कृतियों, मूल्यों और विश्व-दृष्टिकोण तक अभिगम कर सकते हैं, जो उन्हें विविधता को समझने तथा उसकी सराहना करने में मदद कर सकता है।
  • बहुभाषावाद व्यावहारिक लाभ भी प्रदान कर सकता है, जैसे कि कॅरियर के अवसर, यात्रा अनुभव और सूचना एवं मनोरंजन।
  • एक से अधिक भाषाओं के ज्ञान से लोग अधिक लोगों के साथ संवाद कर सकते हैं, अधिक स्थानों का पता लगा सकते हैं और अधिक संसाधनों का आनंद ले सकते हैं।

भारत का बहुभाषी परिदृश्य:

  • भारत दुनियाभर में भाषायी विविधता वाले देशों में से एक है, जहाँ 19,500 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 25% से अधिक जनसंख्या दो भाषाएँ बोलती है, जबकि लगभग 7% जनसंख्या तीन भाषाएँ बोलती है।
  • अध्ययनों के अनुसार, भारतीय युवा अपनी बुजुर्ग पीढ़ी की तुलना में अधिक बहुभाषी हैं।
  • 15 से 49 वर्ष आयु की लगभग आधी शहरी आबादी दो भाषाएँ बोलती है।

भाषावाद के संवर्धन हेतु भारत सरकार के प्रयास:

'हिंदी @ यूएन' परियोजना 2018

  • यूएन में हिंदी को बढ़ावा देने के प्रयासों के तहत 2018 में 'हिंदी @ यूएन' परियोजना आरंभ की गई।
  • इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र की सार्वजनिक सूचनाएं हिंदी में देने को बढ़ावा देना और दुनियाभर के करोड़ों हिंदी भाषी लोगों के बीच वैश्विक मुद्दों के बारे में अधिक जागरूकता लाना है।
  • संयुक्त राष्ट्र में बहुभाषावाद को सही मायने में अपनाना अनिवार्य है।
  • संयुक्त राष्ट्र में अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश ये छह आधिकारिक भाषाएं हैं। जबकि, अंग्रेजी और फ्रेंच संयुक्त राष्ट्र सचिवालय की कामकाजी भाषाएं हैं।

संवैधानिक प्रावधान:

  • आठवीं अनुसूची: भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में आधिकारिक तौर पर 22 भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है। इन सभी राज्य स्तरीय भाषाओं का उल्लेख भारतीय संविधान भाग XVII में अनुच्छेद 343 से 351 तक है।
  • असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।
  • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में छह शास्त्रीय भाषाएँ भी सूचीबद्ध हैं।
  • तमिल (वर्ष 2004 में घोषित), संस्कृत (वर्ष 2005), कन्नड़ (वर्ष 2008), तेलुगू (वर्ष 2008), मलयालम (वर्ष 2013), और उड़िया (वर्ष 2014)।
  • अनुच्छेद 29: यह अनुच्छेद सभी अल्पसंख्यक नागरिकों को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता है। इस अनुच्छेद में नस्ल, जाति, पंथ, धर्म या भाषा के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाने प्रावधान भी उल्लिखित है।
  • अनुच्छेद 343: इस अनुच्छेद के माध्यम से हिंदी को देश की राजभाषा का दर्जा दिया गया है। इस अनुच्छेद में यह व्यवस्था है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिये प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
  • इस अनुच्छेद के अनुसार, संविधान के प्रारंभ से 15 वर्षों की कालावधि के लिए अंग्रेज़ी आधिकारिक भाषा के रूप में प्रयोग की जाती रहेगी।
  • अनुच्छेद 345: किसी राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा राज्य में उपयोग में आने वाली किसी एक अथवा अधिक भाषाओं अथवा हिंदी को उस राज्य के सभी अथवा किसी भी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाने वाली भाषा अथवा भाषाओं के रूप में अंगीकार कर सकेगा।
  • अनुच्छेद 346: यह आधिकारिक संचार में कई भाषाओं के उपयोग की अनुमति देकर भारत की भाषायी विविधता को मान्यता देता है। यह राज्यों के बीच तथा राज्य और संघ के बीच प्रभावी संचार सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र भी प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 347: यह राष्ट्रपति को किसी भाषा को किसी राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने की शक्ति देता है, बशर्ते कि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि उस राज्य का एक बड़ा भाग चाहता है कि उस भाषा को मान्यता दी जाए। ऐसी मान्यता राज्य के एक हिस्से अथवा संपूर्ण राज्य के लिये हो सकती है।
  • अनुच्छेद 348(1): इसमें प्रावधान है कि उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाही अंग्रेज़ी भाषा में होगी जब तक कि संसद विधि द्वारा अन्यथा प्रावधान न करे।
  • अनुच्छेद 348(2): इसमें प्रावधान है कि अनुच्छेद 348(1) के प्रावधानों के बावजूद किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों, जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है, में हिंदी भाषा या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
  • अनुच्छेद 350 प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी शिकायत के निवारण के लिए संघ या राज्य के किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी को संघ या राज्य में उपयोग की जाने वाली किसी भी भाषा में, जैसा भी मामला हो, प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 350A प्रत्येक राज्य को प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में प्रदान करने का निर्देश देता है।
  • अनुच्छेद 350B भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये "विशेष अधिकारी" की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 351 केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास हेतु दिशा-निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।

निष्कर्ष:

इस प्रकार, बहुभाषावाद समाज में विभिन्न समुदायों के लोगों के बीच समृद्धि और समानता को प्रोत्साहित करने का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। वैश्विक परिवेश में बहुभाषावाद के बहुमुखी महत्त्व को देखते हुए भारत को अपनी अन्य सभी क्षेत्रीय भाषाओं को संवैधानिक मान्यता देनी चाहिए। क्योंकि बहुभाषावाद में न केवल संज्ञानात्मक लाभ बल्कि विविध संस्कृतियों को समृद्ध करने की क्षमता भी शामिल है।

स्रोत: लाइव मिंट

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

बहुभाषावाद क्या है? वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में यह कितना प्रासंगिक है? विवेचना कीजिए।