भारत में घटती लैंगिक विषमता

भारत में घटती लैंगिक विषमता

मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन पेपर 1

(महिला सशक्तीकरण एवं लैंगिक समानता)

26 जुलाई, 2023

चर्चा में:

  • हाल ही में जारी विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट-2023 के अनुसार भारत में लैंगिक विषमता घटी है।

लैंगिक अंतराल रिपोर्ट,2023

  • हाल ही में विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट-2023 प्रकाशित हुई है। इस बार भारत वैश्विक लैंगिक सूचकांक में आठ अंकों का सुधार करते हुए 146 देशों में से 127वें स्थान पर पहुंच गया है। पिछली बार से भारत की स्थिति में 1.4 फीसद का सुधार हुआ है।
  • गौरतलब है कि विश्व आर्थिक मंच ने 2022 में अपने वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक में भारत को 146 में से 135वें स्थान पर रखा था।
  • इस सूचकांक में पाकिस्तान 142वें, बांग्लादेश 59वें, चीन 107वें, नेपाल 116वें, श्रीलंका 115वें और भूटान 103वें स्थान पर है। इसी के साथ-साथ 91.2 फीसद के लैंगिक अंतर के साथ आइसलैंड ने लगातार चौदहवें वर्ष में सबसे अधिक लैंगिक क्षमता वाले देश के रूप में अपनी स्थिति बरकरार रखी है।
  • यह वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक पुरुषों और महिलाओं के बीच उनके सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सशक्तीकरण, उपलब्धियों तथा विकास के संदर्भ में असमानता के स्तर का आकलन करता है।
  • यह सूचकांक 2006 में विश्व आर्थिक मंच द्वारा विश्व स्तर पर लैंगिक समानता को मापने के लिए विकसित किया गया। इससे जुड़ी रिपोर्ट दुनियाभर की 130 अर्थव्यवस्थाओं में विश्व की 93 फीसद आबादी में पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता के चार समग्र क्षेत्रों की जांच करती है।
  • इसमें पहले स्तर पर आर्थिक भागीदारी और अवसर की समानता, दूसरे स्तर पर शैक्षिक स्थिति, तीसरे स्तर पर राजनीतिक सशक्तीकरण और चौथे स्तर पर स्वास्थ्य और उत्तरजीविता को रखकर महिला-पुरुष समानता की गणना की जाती है।
  • साथ ही इस सूचकांक को बनाने के लिए उपयोग किए गए चौदह चरों में से तेरह अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम तथा विश्व स्वास्थय संगठन से जुड़े और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तथ्यों का विश्लेषण करते हुए लैंगिक अंतराल सूचकांक तैयार किया गया है।

भारत के संदर्भ में रिपोर्ट का आकलन:

  • इस रिपोर्ट का आकलन बताता है कि भारत में शिक्षा के सभी स्तरों पर पंजीकरण में लैंगिक समानता बढ़ी है तथा इसने 64.3 फीसद लैंगिक अंतराल को कम किया है
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक सहभागिता और अवसरों के मामले में भारत 36.7 फीसद समानता के स्तर पर पहुंचा है। महिलाओं के वेतन और आय के मामले में इसमें मामूली वृद्धि हुई है।
  • भारत ने राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में पहली बार 25.3 फीसद समानता हासिल की है। निश्चित ही यह अंक 2006 में पहली बार आई रिपोर्ट के बाद सबसे अधिक रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि 2006 के बाद से ही यहां महिला सांसदों की संख्या 15.1 फीसद रहकर सर्वाधिक रही है।

लैंगिक समानता हेतु भारत सरकार के प्रयास:

  • भारत सरकार के प्रकाशित हाल के आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं की अस्मिता, सुरक्षा और प्रतिष्ठा से जुड़ा महिला शौचालयों का निर्माण, देश में कन्या भ्रूण हत्या रोकने, स्कूलों में लड़कियों की संख्या बढ़ाने, स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या कम करने, शिक्षा के अधिकार कानून को लागू कराने हेतु बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के अंतर्गत 57 करोड़ से अधिक के बजट का आबंटन किया गया है।
  • लैंगिक अंतर को कम करने के उद्देश्य से ‘जेंडर बजट’ में 2.23 लाख करोड़ की धनराशि का आबंटन, सुकन्या समृद्धि योजना में तीन करोड़ से अधिक बच्चियों के खाते खुलवाना, रक्षा सेवा क्षेत्र के अंतर्गत पुलिसबलों में 33 फीसद पदों पर महिला आरक्षण, 28 फीसद महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन, प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के अंतर्गत महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण आदि ऐसी दर्जनों योजनाओं का ही प्रभाव है कि पढ़ाई से लेकर सेवा और स्वरोजगार के क्षेत्र में भारत की महिलाओं को आत्मनिर्भर होने के अवसर प्राप्त हुए हैं।

भारतीय लैंगिक विषमता का तुलनात्मक विश्लेषण:

  • तुलनात्मक रूप से देखें तो इस रिपोर्ट में लैंगिक समानता के मामले में नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश ओर भूटान को भारत से बेहतर स्थिति में दर्शाया गया है। इससे रिपोर्ट में पक्षपाती दृष्टिकोण साफ झलकता है। भारत में सशक्त लोकतंत्र है, यह विश्व की पांचवीं सशक्त अर्थव्यवस्था बन गया है। चिकित्सा, शिक्षा, रक्षा, अंतरिक्ष विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आदि में भारत का आज कोई मुकाबला नहीं है।
  • राजनीतिक और कारोबारी रूप से महिलाएं आज सफलता की कहानी गढ़ रही हैं। यह निश्चित ही माता-पिता की बदलती सोच और उनकी उदारता का ही परिणाम है। कहना न होगा कि भारत में महिलाओं के प्रति यह उदारता और सोच में बदलाव अनायास नहीं है। देश में महिला सशक्तीकरण के अन्य प्रयासों के अलावा केंद्र सरकार के विगत नौ वर्षों के सेवा, सुशासन, गरीब कल्याण और महिला सशक्तीकरण से जुड़ी योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर जमीनी स्तर पर लागू करने का भी अच्छा-खासा परिणाम सामने आया है।

 

 

  • वर्ष 2022 में जारी रिपोर्ट में सरकार ने विश्व आर्थिक मंच की मूल्याकंन प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे। उसने कहा था कि यह सूचकांक जमीनी स्तर पर भारत में महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण और वित्तीय समावेशन पर दृष्टिपात करने में विफल रहा है। भारत ने जिस तरह वैश्विक भुखमरी सूचकांक को चुनौती दी है, ठीक उसी तरह वैश्विक लैंगिक सूचकांक को भी चुनौती देने का समय आ गया है। भारत सरकार का कहना था कि इस वैश्विक रिपोर्ट का मूल्यांकन भारतीय मानकों को नकार कर पश्चिमी मानकों के आधार पर किया गया है। निश्चित ही इस लैंगिक अंतराल रिपोर्ट को इस बार सावधानी के साथ तैयार करते हुए भारत को कुछ बेहतर स्थिति में दर्शाया गया है।
  • पिछले दिनों वैश्विक स्तर पर जो रपटें प्रकाशित हुर्इं उनमें से अधिकांश में या तो भारत को कमतर आंकने या भारत की छवि धूमिल करने का प्रयास किया गया। इस संदर्भ में ऐसा अनुभव होता है कि विदेशी स्तर पर भारत के विकासशील देश से विकसित राष्ट्र बनने के संक्रमण काल की वैश्विक प्रतिस्पर्धा अधिक दिखाई पड़ती है। आज भारत की जनसंख्या में आधी आबादी महिलाओं की है।
  • भारत में महिलाओं को कमतर आंकने की बात अब धीरे-धीरे पृष्ठभूमि में जा रही है। भारत में महिलाओं को कमतर आंकने की प्रवृत्ति भारत के गुलामी काल की देन अधिक रही है। वैदिक काल के बाद के इस्लामिक और ब्रिटिश शासनकाल में शासकों ने यहां स्त्री और पुरुष की अलग-अलग अस्मिताओं को विकसित करने का पूर्व नियोजित कार्य किया है। इसी आधार पर यहां स्त्री और पुरुष के बीच विभेद अधिक बढ़ा है।
  • भारत में लैंगिक समानता सतत विकास के साथ-साथ मानवाधिकारों को साकार करने के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। भारत में लैंगिक समानता का प्राथमिक उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जिसमें महिला और पुरुष जीवन के सभी चरणों में समान अवसरों और दायित्वों का निष्पक्षता से निर्वहन करें। यह बात बिल्कुल सच है कि जिस राष्ट्र ने अपने यहां लैंगिक समानता का संरक्षण किया है, उसने विकसित राष्ट्र के स्वप्न को भी साकार किया है।
  • भारत अब विकसित राष्ट्र की यात्रा तय करने की ओर अग्रसर है। ऐसे में मैकेन्जे ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि भारत में लैंगिक समानता के प्रयास तेज करने से वैश्विक विकास में बारह अरब डालर की वृद्धि होने की संभावना है। साथ ही महिलाओं की श्रमशक्ति में दस फीसद की भागीदारी बढ़ाने से 2025 तक भारत की जीडीपी में तेजी से बढ़ोतरी हो सकती है।
  • इस तथ्य के पुख्ता प्रमाण हैं कि एक समृद्ध समाज और राष्ट्र बनाने के लिए महिलाओं को समानता के आधार पर विकसित करना अपरिहार्य है। यह ताजा वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक रिपोर्ट भी इसी ओर संकेत करते हुए भारत के इस दिशा में निरंतर प्रयास करने की सराहना करते हुए भविष्य में भी इन्हें जारी रखने की प्ररेणा देती है।

निष्कर्ष:

  • विश्व के लगभग हर समाज में लैंगिक असमानता मौजूद है। प्राचीन काल से लेकर आज तक महिलाओं को निर्णय लेने, उन्हें आर्थिक इकाई के रूप में स्वीकार करने और सामाजिक संसाधनों तक उनकी पहुंच से उन्हें वंचित रखने की प्रथा का एक लंबा इतिहास रहा है।
  • लैंगिक समानता महिलाओं और पुरुषों के प्रति निष्पक्ष होने की प्रक्रिया है। इसे सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर लंबे समय से प्रयास होते रहे हैं।
  • लैंगिक समानता के लिए आवश्यक है कि महिला और पुरुष सामाजिक शक्ति, निर्णय क्षमता, अवसरों, संसाधनों और पुरस्कारों का समान रूप से लाभ उठा सकें।

मुख्य परीक्षा प्रश्न

वर्तमान में भारत में लैंगिक विषमता कम हुई है। इसका तुलनात्मक विश्लेषण कीजिए।