भारत में “हरित निर्वाचन” अभियान

भारत में “हरित निर्वाचन” अभियान

GS-2,3: पोलिटी एवं पर्यावरण संरक्षण

 (IAS/UPPCS)

 

03/04/2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

प्रसंग:

हाल ही में, भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने चुनावों में गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों के उपयोग (Uses of Non-Biodegradable Materials) से जुड़े पर्यावरणीय जोखिमों (Environmental Hazards) पर नियंत्रण के लिए हरित निर्वाचन पर जोर दिया है।

  • गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग वर्ष 1999 से राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों से चुनाव अभियान के दौरान चुनाव सामग्री के लिए प्लास्टिक/पॉलिथीन के उपयोग (Uses of plastic/polyethylene) न करने का सुझाव देता रहा है।

हरित चुनाव की आवश्यकता के कारण:

पर्यावरणीय कार्बन फूटप्रिंट की समस्या:

  • चुनाव प्रचार एवं प्रक्रियाओं के दौरान देशभर में यातायात वाहनों एवं अभियान उड़ानों से होने वाला उत्सर्जन समग्र तौर पर कार्बन फूटप्रिंट में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
  • उदाहरण के तौर पर वर्ष 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में, केवल एक उम्मीदवार की अभियान उड़ानों से उत्सर्जन 500 अमेरिकियों के वार्षिक कार्बन फूटप्रिंट के बराबर था।

निर्वनीकरण की समस्या:

  • मतपत्रों, अभियान साहित्य और प्रशासनिक दस्तावेज़ों के लिए  कागज़-आधारित सामग्रियों पर अत्यधिक निर्भरता से निर्वनीकरण यानि वनों की अत्यधिक हानि और जैव ऊर्जा उत्पादन प्रक्रिया बाधित होती है।

ध्वनि प्रदूषण एवं ऊर्जा का व्यय:

  • लाउडस्पीकर, प्रकाश व्यवस्था और अन्य ऊर्जा खपत वाले उपकरणों के साथ बड़े पैमाने पर चुनावी रैलियाँ ऊर्जा की खपत एवं उत्सर्जन में योगदान करती हैं।

अपशिष्ट उत्पादन की समस्या:

  • चुनाव अभियानों के दौरान पीवीसी फ्लेक्स बैनर, होर्डिंग्स और डिस्पोज़ेबल के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरण में अपशिष्ट उत्पादन का प्रभाव बढ़ जाता है।

हरित निर्वाचन की अवधारणा:

  • हरित निर्वाचन एक पर्यावरण-मित्र अभियान है जिसमें चुनाव अभियानों के दौरान राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों और मतदाताओं को बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों के उपयोग हेतु जागरुक करना ताकि पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन के प्रभाव को कम किया जा सके।

उद्देश्य:

  • चुनावी अभियानों के दौरान पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना
  • पुनर्चक्रित सामग्रियों का उपयोग करना,
  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग को बढ़ावा देना और उम्मीदवारों को स्थायी अभियान प्रथाओं को अपनाने के लिए  प्रोत्साहित करना।

महत्त्व:

  • इससे निर्वनीकरण को रोकने में मदद मिल सकती है।
  • बायोडिग्रेडेबल सामग्री से निर्मित बैनर तथा होर्डिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है
  • कार्बन फुटप्रिंट की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है
  • रैलियों के दौरान ऊर्जा-कुशल प्रकाश व्यवस्था, ध्वनि प्रणाली और परिवहन का विकल्प चुनने से कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • इससे डिजिटल अभियान को बढ़ावा दिया जा सकता है क्योंकि प्रचार के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म (वेबसाइट, सोशल मीडिया और ईमेल) का लाभ उठाने से कागज़ का उपयोग और ऊर्जा की खपत कम हो जाती है।

शुरू किए गए प्रमुख हरित निर्वाचन अभियान:

केरल में हरित अभियान:

  • वर्ष 2019 के आम चुनाव के दौरान, केरल राज्य चुनाव आयोग ने चुनाव अभियानों में राजनीतिक दलों को एकल उपयोग वाली प्लास्टिक सामग्री से बचने का अभियान शुरू किया था।
  • इस अभियान के पर्यावरणीय प्रभावों को देखते हुए, केरल उच्च न्यायालय ने चुनाव प्रचार में फ्लेक्स और गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  • इस अभियान के दौरान केरल में, दीवार भित्तिचित्र और कागज़ के पोस्टर उभरे, जो अधिक टिकाऊ दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं। इसके अतिरिक्त, सरकारी निकायों ने पर्यावरण-मित्र प्रथाओं पर बल देते हुए हरित निर्वाचन सुनिश्चित करने के लिये तिरुवनंतपुरम में ज़िला प्रशासन के साथ सहयोग किया।
  • इस अभियान के तहत जागरूकता बढ़ाने और पर्यावरण के प्रति जागरूक व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए  चुनाव कार्यकर्त्ताओं को गाँवों में प्रशिक्षण दिया गया।

गोवा में पर्यावरण-मित्र बूथ:

  • वर्ष 2022 में, गोवा राज्य जैवविविधता बोर्ड ने विधानसभा चुनावों के दौरान पर्यावरण-मित्र चुनाव बूथ शुरू शुरू किया था।
  • इन बूथों का निर्माण सत्तारी और पोंडा के स्थानीय पारंपरिक कारीगरों द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार की गई बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों का उपयोग करके किया गया था।
  • ये सामग्रियाँ न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि ये स्थानीय कारीगरों की भी मदद करती हैं।

श्रीलंका का कार्बन-सेंसिटिव अभियान

  • वर्ष 2019 में श्रीलंका की पोदुजना पेरामुना (SLPP) पार्टी ने विश्व का पहला कार्बन-सेंसिटिव पर्यावरण अनुकूल चुनाव अभियान शुरू किया।

एस्टोनिया की डिजिटल वोटिंग क्रांति

  • एस्टोनिया ने पारंपरिक कागज़-आधारित विधि के विकल्प के रूप में डिजिटल वोटिंग का प्रयोग किया।
  • इस दृष्टिकोण ने पर्यावरणीय प्रभाव को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करते हुए मतदाता भागीदारी को प्रोत्साहित किया।

हरित निर्वाचन को अपनाने में प्रमुख बाधाएं/चुनौतियाँ:

प्रशिक्षण और तकनीकी का अभाव:

  • नई प्रौद्योगिकियों तक पहुँच और अधिकारियों को प्रशिक्षण करने की चुनौती। यह अभियान चलाने के लिए तकनीकी और पर्याप्त प्रशिक्षण आवश्यक है।
  • दूरवर्ती अथवा वंचित क्षेत्रों के मतदाताओं सहित सभी मतदाताओं तक प्रौद्योगिकी की पहुँच और उपयोग सुनिश्चित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल साक्षरता में असमानताओं को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।

वित्तीय एवं बजट आवंटन संबंधी चुनौतियां:

  • पर्यावरण-अनुकूल सामग्री और उन्नत प्रौद्योगिकी को नियोजित करने में वित्त एक महत्वपूर्ण बाधा है। सरकारों, विशेषकर सीमित बजट वाली सरकारों को वित्तीय बाधाओं के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • हरित अभियान से संबंधित आवश्यक सेवाओं को शुरू करने के लिए धन आवंटित करवाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है।

सांस्कृतिक जड़ता और मतदाता व्यवहार:

  • परंपरागत रूप से, मतदान को मतदान केंद्रों पर भौतिक उपस्थिति से जोड़ा गया है। सफल आधुनिकीकरण के लिये सांस्कृतिक जड़ता पर काबू पाना और मतदाता व्यवहार में बदलाव आवश्यक है।

इवीएम मशीन में हैकिंग संबंधी बाधा:

  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को हैक किया जा सकता है इसके लिए मतदाताओं विश्वास को हासिल करना एक बड़ी चुनौती है। सुरक्षा, गोपनीयता और संभावित हेरफेर के बारे में जनता के संदेह को पारदर्शिता तथा मज़बूत सुरक्षा उपायों के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिए।

सुरक्षा संबंधी चुनौतियां:

  • ऑनलाइन वोटिंग या ब्लॉकचेन-आधारित सिस्टम जैसे नए दृष्टिकोण पेश करने से मत सुरक्षा के बारे में चिंताएँ बढ़ सकती हैं।

साइबर सुरक्षा ज़ोखिम:

  • यह सुनिश्चित करना कि मतदान प्रणालियाँ साइबर खतरों से सुरक्षित हैं, सर्वोपरि है। कोई भी समझौता जनता के विश्वास और चुनाव की अखंडता को कमज़ोर कर सकता है।

एकल-उपयोग प्लास्टिक/गैर- बायोडिग्रेडेबल सामग्री:

  • एकल-उपयोग प्लास्टिक एक डिस्पोजेबल सामग्री है जिसे फेंकने या पुनर्नवीनीकरण करने से पहले केवल एक बार उपयोग किया जा सकता है, जैसे प्लास्टिक बैग, पानी की बोतलें, सोडा की बोतलें, स्ट्रॉ, प्लास्टिक प्लेटें, कप, अधिकांश खाद्य पैकेजिंग और कॉफी स्टिरर एकल उपयोग वाली प्लास्टिक सामग्री के स्रोत हैं।

आगे की राह:

  • इस हरित परिवर्तन में राजनीतिक दलों, निर्वाचन आयोग, सरकार, मतदाताओं, मीडिया और नागरिक समाज जैसे सभी हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिए।
  • हरित परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिये शीर्ष स्तर के निर्देशों को ज़मीनी स्तर की पहल के साथ एकीकृत करना अनिवार्य है।
  • राजनीतिक दलों को इसका नेतृत्व करना चाहिये। यह यात्रा पर्यावरण-अनुकूल निर्वाचन प्रथाओं को अनिवार्य करने वाला कानून बनाकर शुरू हो सकती है, जिसमें निर्वाचन आयोग उन्हें आदर्श आचार संहिता में शामिल करेगा।
  • इसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म या घर-घर जाकर प्रचार करना (ऊर्जा-गहन सार्वजनिक रैलियों को कम करना) और निर्वाचन कार्य के लिये सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल है।
  • मतदान केंद्रों के लिये प्लास्टिक और कागज़-आधारित सामग्रियों के प्रतिस्थापन को प्राकृतिक वस्त्र, पुनर्नवीनीकृत कागज़ और कम्पोस्टेबल प्लास्टिक जैसे टिकाऊ स्थानीय विकल्पों के साथ प्रोत्साहित करने से अपशिष्ट प्रबंधन में सहायता मिलेगी तथा स्थानीय कारीगरों को समर्थन मिलेगा।
  • निर्वाचन आयोग डिजिटल वोटिंग पर ज़ोर दे सकता है, भले ही इसके लिये अधिकारियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता हो।
  • डिजिटल चुनावी प्रक्रिया में सभी मतदाताओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये सरकार को मतदाताओं को शिक्षित और समर्थन करना चाहिये तथा डिजिटल प्रौद्योगिकी तक समान पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिए।

निष्कर्ष:

स्वस्थ लोकतंत्र और सतत विकास की बहाली हेतु निर्वाचन आयोग द्वारा प्रेरित यह हरित निर्वाचन अभियान एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि इसकी चुनौतियों के निपटान के लिए सही एवं उचित राह को अपनाया जाए तो यह अभियान डिजिटल वोटिंग युग में पर्यावरण और मतदाता दोनों के लिए अनुकूल सिद्ध हो सकता है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारत में “हरित निर्वाचन” अभियान की अवधारणा एवं इसके महत्त्व पर चर्चा कीजिए

भारत में हरित निर्वाचन की आवश्यकता एवं इसको अपनाने में प्रमुख बाधाओं के समाधान में आगे की राह पर चर्चा कीजिए।