भारत में उच्च शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण

भारत में उच्च शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण

संदर्भ:

  • हाल ही के दिनों में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफारिशों के अनुसार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों को अपने परिसर खोलने की मंजूरी दी है।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भारत में विदेशी संस्थानों की स्थापना और संचालन के लिए भारत में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के परिसर की स्थापना और संचालन-2023’ नामक मसौदा जारी किया है।
  • यह मसौदा विदेशी विश्वविद्यालयों को प्रवेश प्रक्रिया, शुल्क संरचना, शिक्षकों की नियुक्ति और पारिश्रमिक तय करने और अर्जित आय को स्वदेश भेजने की स्वायत्तता प्रदान करता है।
  • पहली बार आर्थिक उदारीकरण के प्रारंभिक चरण में वर्ष 1995 में और 2007 में भी विदेशी विश्वविद्यालयों को अपने परिसर शुरू करने के लिए एक विधेयक लाया गया था।

विदेशी विश्वविद्यालयों हेतु निर्धारित मानदंड:

  • भारत में वही विदेशी संस्थान पात्र हैं, जिन्होंने समग्र या विषयवार वैश्विक रैंकिंग के शीर्ष पांच सौ में अपनी जगह बनाई हो या अपने देश में एक प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त हो।
  • ये विश्वविद्यालय पूर्णकालिक कार्यक्रम ही शुरू कर सकेंगे।

उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण होने से लाभ:

  • उच्च शिक्षा क्षेत्र में विद्यार्थियों और संस्थानों के मध्य प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
  • प्रतिभाशाली प्रोफेसरों, शोधकर्ताओं और छात्रों को आकर्षित करने हेतु विदेशी विश्वविद्यालय भारत में मौजूद विश्वविद्यालयों के साथ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करेंगे।
  • उद्योग परियोजनाओं, प्रतिभाशाली छात्रों और शिक्षकों के लिए भारतीय विश्वविद्यालय अपने शिक्षा पद्धति में सुधार करेंगे।
  • शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण होने से भारतीय शिक्षा का विदेशों में प्रचार-प्रसार बढ़ेगा।
  • इससे भारतीय शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी और छात्रों के भारत छोड़कर विदेश जाने में भी काफी कमी आएगी।
  • भारतीय छात्रों को कम खर्चे पर विदेशी डिग्री मिल पाएगी और भारत अध्ययन और शोध के एक किफायती और आकर्षक केंद्र के रूप में भी स्थापित हो सकेगा।
  • भारतीय छात्रों के बीच अंतरराष्ट्रीय शिक्षा की भारी मांग पूरी होने लगेगी।
  • वर्ष 2022 में ही, करीब साढ़े चार लाख भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए। हर साल हमारे देश का लगभग अठाईस से तीस अरब अमेरिकी डालर बाहर जाने से बच जाएगा।
  • अनुमान है कि 2024 तक, अठारह लाख छात्र विदेश जाएंगे और लगभग 6.4 खरब रुपए खर्च करेंगे, जो कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 2.7 प्रतिशत है।
  • आंकड़ों के अनुसार, 2022 के पहले तीन महीनों में, एक लाख तैंतीस हजार एक सौ पैंतीस छात्रों ने अकादमिक गतिविधियों के लिए भारत छोड़ा, जबकि 2020 में करीब दो लाख साठ हजार और 2021 में करीब साढ़े चार लाख भारतीयों ने विदेश में शिक्षा ग्रहण की, जो एक वर्ष में ही 41 फीसद की वृद्धि दर्शाता है।
  • भारत से बाहर जाने वाला प्रतिभा पलायन रुक जाएगा।
  • भारतीय छात्रों के अलावा उपमहाद्वीप और अन्य विकासशील देशों के छात्र भी इन संस्थानों में शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं, जो कि बहु-संस्कृतिवाद के साथ-साथ अन्य देशों के साथ भारत को मजबूत संबंध स्थापित करने में मदद करेगा।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी पूंजी प्रवाह बढ़ेगा।
  • छोटे-मोटे व्यवसाइयों और कारीगरों के लिए बहुत सारे रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
  • विदेशी विश्वविद्यालय भारतीय छात्रों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने और भारत की आबादी को मानव संसाधन में परिवर्तित करने में भी सहायता प्रदान करेंगे।

भारत में विश्वविद्यालयों की स्थिति:

  • भारत में एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय और बयालीस हजार से अधिक महाविद्यालय हैं।
  • विश्व के सबसे बड़े उच्च शिक्षा तंत्रों में से एक होने के बावजूद, उच्च शिक्षा में भारत का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) सिर्फ 27.1 फीसद है, जो कि विश्व में सबसे कम है।
  • ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां वर्तमान भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है।
  • भारत का कोई भी विश्वविद्यालय क्यूएस रैंकिंग में शीर्ष सौ में शामिल नहीं है।
  • भारत के विश्वविद्यालयों में अनुसंधान और विकास की अनदेखी कर दी जाती है।
  • कर्मचारियों की कमी, कम संसाधन, छात्रों का बीच में पढ़ाई छोड़ना और संस्थानों का राजनीतिकरण जैसी चुनौतियां भारतीय अकादमिक संस्थाओं को अपना मूल्यवर्द्धन करने से रोकती हैं।
  • करिअर परामर्श और रोजगारपरकता एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें भारतीय संस्थान अपने विदेशी समकक्षों से बहुत पीछे हैं।
  • हमारा पाठ्यक्रम उन लोगों से चर्चाओं पर आधारित नहीं होता है, जो अंतत: हमारे छात्रों को रोजगार देते हैं या अपने यहां काम पर रखते हैं।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग:

  • 28 दिसंबर, 1953 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने औपचारिक रूप से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की आधारशिला रखी थी।
  • विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग विश्‍वविद्यालयी शिक्षा से संबंधित मापदंडों के निर्धारण हेतु वर्ष 1956 में संसद के अधिनियम द्वारा स्‍थापित एक स्‍वायत्‍त संगठन है।
  • यह आयोग पात्र विश्‍वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान प्रदान करने के अतिरिक्‍त, केंद्र और राज्‍य सरकारों को उच्‍चतर शिक्षा के विकास हेतु आवश्‍यक सुझाव भी देता है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में अवस्थित है। इसके देश में छह क्षेत्रीय कार्यालय हैं- पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बंगलूरू।

निष्कर्ष:

  • हाल के दिनों में भारत की आर्थिक स्थिति वैश्विक स्तर पर मजबूत हुई है। नौकरियों की प्रकृति और कर्मचारियों की मांगों में तेजी से बदलाव हो रहा है, जो सीधे-सीधे शिक्षा प्रदाताओं को यह जिम्मेदारी देता है कि वे इस बदलाव का अनुमान लगाएं और छात्रों को इसके अनुरूप तैयार करें।
  • विदेशी विश्वविद्यालयों ने इस कला में महारत हासिल की है। इस आधार पर विदेशी संस्थान भारत को, दो दशक पहले की तुलना में, अपने लिए ज्यादा अनुकूल मान सकते हैं। अकादमिक व्यवस्था, भूस्वामित्व, कराधान और शिक्षकों की भर्ती से संबंधित नियमन आदि उनकी चिंता के सामान्य विषय हैं।
  • इन पर आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए। इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि विदेशी संस्थाएं भारत में अपने परिसरों की स्थापना सहयोग और ज्ञान-साझाकरण के लिए करें, न कि सिर्फ व्यावसायिक हितों के लिए।
  • ये संस्थाएं केवल अभिजात और उच्च वर्ग के लिए ही सीमित न हों, बल्कि वंचित वर्गों के छात्रों का हित-संरक्षण करते हुए उन्हें भी समुचित अवसर प्रदान करें।
  • इसलिए उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सर्वोत्तम कार्य-संस्कृति के माध्यम से शैक्षणिक संप्रभुता, न्यूनतम शासन, दूरदर्शी प्रबंधन, बेहतर संकाय, उद्योगों के साथ संबंध और छात्रों की अकादमिक सक्रियता के जरिए भारत को आगे बढ़ाने हेतु विदेशी संस्थानों का स्वागत किया जाना चाहिए।

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