
जूट सामग्री में अनिवार्य पैकेजिंग हेतु मानदंडों का विस्तार
जूट सामग्री में अनिवार्य पैकेजिंग हेतु मानदंडों का विस्तार
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3:
(जूट कृषि से संबंधित सरकार के मानदंड एवं कार्यक्रम)
संदर्भ:
- हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने अनिवार्य जूट पैकेजिंग मानदंडों के विस्तार को मंजूरी दी है।
- सरकार ने 100 प्रतिशत खाद्यान्न उत्पाद और 20 प्रतिशत चीनी उत्पाद को विभिन्न प्रकार के जूट के बोरों में पैक करना अनिवार्य कर दिया।
- पैकेजिंग में जूट के अनिवार्य उपयोग हेतु निर्धारित ये मानदंड जूट वर्ष 2022-23 (1 जुलाई, 2022 से 30 जून, 2023) के लिए प्रभावी होंगे।
मुख्य निष्कर्ष:
- भारत सरकार जूट सामग्री में अनिवार्य पैकेजिंग हेतु मानदंडों का विस्तार जूट पैकिंग सामग्री अधिनियम, 1987 के तहत करती है।
- यह अधिनियम सभी स्थिरता मानकों को पूरा करता है।
- यह अधिनियम जूट किसानों, श्रमिकों और जूट के सामान के उत्पादन में लगे व्यक्तियों के हितों की रक्षा करता है।
- इसके अतिरिक्त यह भी अनिवार्य किया गया है कि खाद्यान्नों की पैकिंग के लिए शुरू में 10 प्रतिशत जूट के बोरों की खरीद ‘गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस पोर्टल’ पर रिवर्स ऑक्शन(उल्टी नीलामी) के माध्यम से की जाएगी।
- यदि जूट पैकिंग सामग्री की आपूर्ति में कोई कमी या व्यवधान आता है या किसी तरह की कोई प्रतिकूल स्थिति पैदा होती है तो कपड़ा मंत्रालय अन्य मंत्रालयों के साथ मिलकर नियमों में छूट दे सकता है और खाद्यान्नों की अधिकतम 30 प्रतिशत की पैकिंग किये जाने का निर्णय ले सकता है।
इसके लाभ:
- भारत सरकार के इस निर्णय से देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों विशेषकर पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मेघालय और त्रिपुरा के किसानों तथा श्रमिकों को अत्यधिक लाभ मिलेगा।
- चीनी उत्पाद को विभिन्न प्रकार के जूट के बोरों में पैक करने से जूट उद्योग को बड़ा लाभ होगा।
- देश में कच्चे जूट के घरेलू उपयोग और जूट पैकिंग सामग्री को बढ़ावा मिलेगा।
- तकनीकी उन्नयन और प्रमाणित बीजों के वितरण से जूट फसलों की गुणवत्ता एवं उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी और इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी।
जूट:
- जूट सुनहरा, मुलायम, लंबा और रेशमी चमक वाला एक प्राकृतिक, जैव-निम्नीकरणीय, नवीकरणीय और पुन: प्रयोज्य फाइबर(रेशा) है।
- यह पौधे के तने की त्वचा से प्राप्त किया जाता है। जूट को रंग और उच्च नकद मूल्य के कारण गोल्डन फाइबर के रूप में जाना जाता है।
- यह पर्यावरण की रक्षा में मदद करता है।
भारत में जूट उत्पादन:
- भारत का पहला जूट कारखाना 1854 में कोलकाता में स्थापित किया गया था।
- भारत जूट का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और उसके बाद बांग्लादेश और चीन का स्थान आता है।
- हालांकि क्षेत्र और व्यापार के मामले में बांग्लादेश भारत के 7% की तुलना में वैश्विक जूट निर्यात के तीन-चौथाई भाग का प्रतिनिधित्त्व करता है। भारत 97 से अधिक देशों में जूट और जूट से बने उत्पादों का निर्यात करता है।
- पश्चिम बंगाल देश के कुल जूट का लगभग 50 प्रतिशत जूट उत्पादित करता है। देश के अन्य प्रमुख जूट उत्पादक क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, मेघालय और उड़ीसा शामिल हैं।
- आज दुनिया भर में प्लास्टिक बैग पर बैन लगने के बाद भारतीय जूट की मांग अधिक बढ़ गई है।
जूट उत्पादन हेतु अनुकूल परिस्थितियां:
- तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए।
- वर्षा लगभग 150-250 सेमी. के मध्य होना चाहिए।
- जूट कृषि के लिए जलोढ़ मिट्टी उपयुक्त होती है।
भारत में जूट आधारित अर्थव्यवस्था के उद्देश्य:
- जूट उद्योग के कुल उत्पादन का 75 प्रतिशत जूट बोरी है, जिसमें से 85 प्रतिशत की आपूर्ति भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्य खरीद एजेंसियों (एसपीए) को की जाती है और शेष को सीधे निर्यात/बेचा जाता है।
- सरकार खाद्यान्न की पैकिंग के लिए हर साल लगभग 9,000 करोड़ रुपये के जूट बोरे खरीदती है, जिससे जूट किसानों और श्रमिकों के उत्पादन के लिए गारंटीकृत बाजार सुनिश्चित होता है।
- जूट क्षेत्र पर लगभग 3.7 लाख श्रमिक और कई लाख किसान परिवारों की आजीविका निर्भर है इसलिए भारत सरकार इस क्षेत्र के विकास हेतु निम्नलिखित प्रयास कर रही है:
- कच्चे जूट के उत्पादन एवं मात्रा को बढ़ाना।
- जूट क्षेत्र का विविधीकरण करना।
- जूट उत्पादों की सतत् मांग को बढ़ावा देना।
जूट क्षेत्र के उत्थान हेतु भारत सरकार के कार्यक्रम:
- गोल्डन फाइबर क्रांति
- भारत में स्वर्णिम रेशे की क्रांति का संबंध जूट उत्पादन से है।
- जूट और मेस्टा पर प्रौद्योगिकी मिशन
- जूट आईसीएआरई
- भारत सरकार ने कच्चे जूट की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए एक विशेष कार्यक्रम ‘जूट आईसीएआरई’ शुरू किया है।
- इस कार्यक्रम द्वारा सरकार 2 लाख जूट किसानों को विभिन्न प्रकार की कृषि पद्धतियों को उपलब्ध कराएगी।
- इन कृषि पद्धतियों में बीजों की पंक्तियों में बुवाई, नोकदार निराई-उपकरण का प्रयोग करके खरपतवार प्रबंधन और गुणवत्ता युक्त प्रमाणित बीजों का वितरण तथा सूक्ष्म जीवों की मदद से कच्चे जूट को सड़ाने की प्रक्रिया शामिल है।
- जूट क्षेत्र का विविधीकरण:
- जूट क्षेत्र के विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय जूट बोर्ड ने राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान के साथ एक समझौता किया है और इसी के अनुरूप गांधी नगर (गुजरात) में एक जूट डिजाइन प्रकोष्ठ खोला गया है।
- राष्ट्रीय जूट बोर्ड:
- भारतीय जूट के प्रचार-प्रसार के लिए राष्ट्रीय जूट बोर्ड सर्वोच्च निकाय है।
- राष्ट्रीय जूट बोर्ड अधिनियम-2008 के तहत स्थापित इस बोर्ड की अध्यक्षता भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय के सचिव द्वारा की जाती है।
- वर्ष 1984 में जूट विनिर्माता विकास परिषद को एक सांविधिक निकाय के रूप में गठित किया गया था।
- लेकिन अब यह परिषद राष्ट्रीय जूट बोर्ड में समाहित कर दी गयी है।
- भारतीय जूट निगम लिमिटेड:
- यह भारत सरकार की एक एजेंसी है जो जूट की खेती करने वाले राज्यों को न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं सहायता प्रदान करती है।
- इस निगम का गठन वर्ष 1971 में कोलकाता पश्चिम बंगाल में किया गया था।
- भारतीय जूट निगम द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य और वाणिज्यिक अभियानों के तहत जूट की ऑनलाइन खरीद के लिए जूट किसानों को 100 प्रतिशत धनराशि भेजी जा रही है।
- इसके अलावा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा खासकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में जूट जियो टेक्सटाइल्स और एग्रो टेक्सटाइल्स को बढ़ावा दिया गया है। इसमें केंद्रीय सड़क परिवहन और जल संसाधन मंत्रालय की भी सहभागिता है।
- जूट उत्पाद के आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी:
- भारत सरकार ने जूट क्षेत्र में मांग को बढ़ावा देने के लिए बांग्लादेश और नेपाल से जूट उत्पादों के आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगायी है जो 5 जनवरी, 2017 से लागू है।
- जूट स्मार्ट ई- कार्यक्रम:
- भारत सरकार ने जूट क्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए दिसंबर 2016 में जूट स्मार्ट ई-कार्यक्रम को शुरू किया था।
- इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य बी-ट्विल सेकिंग किस्म के जूट के बोरों की खरीद के लिए सरकारी एजेंसियों द्वारा एक समन्वित प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराना था।
निष्कर्ष:
- भारत सरकार के इन मध्यवर्ती प्रयासों से कच्चे जूट की गुणवत्ता और उत्पादन में काफी सुधार हुआ है और जूट किसानों की आय बढ़कर 10,000 रुपए प्रति हेक्टेयर हो गई है।
- चूंकि जूट उद्योग मुख्यत: सरकारी क्षेत्र पर निर्भर है और प्रतिवर्ष खाद्यान्नों की पैकिंग के लिए जूट बोरों की खरीद पर भारत सरकार 7500 करोड़ रुपए से अधिक धनराशि खर्च करती है। इसलिए यह जूट क्षेत्र में मांग को जारी रखने और इस क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों एवं किसानों की आजीविका के लिये भारत सरकार की ओर से उठाया गया एक सकारात्मक कदम है।
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प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न:
जूट के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
- भारत का पहला जूट कारखाना 1854 में कोलकाता में स्थापित किया गया था।
- भारत दुनियाभर में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1, न ही 2
उत्तर: विकल्प C
मुख्य परीक्षा प्रश्न : भारत में जूट कृषि को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों की विवेचना कीजिए।
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