सांसदों की अयोग्यता और मानहानि

सांसदों की अयोग्यता और मानहानि

मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन-2

(भारतीय संविधान और प्रशासन से संबंधित मुद्दे एवं चुनौतियां)

संदर्भ:

  • हाल ही में, सूरत की सेशन कोर्ट ने “मोदी उपनाम” को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के खिलाफ चल रहे मानहानि के मामले में दो साल की सजा सुनाई है। 
  • कोर्ट के निर्णय को संज्ञान में लेते हुए लोकसभा सचिवालय ने कांग्रेस के सांसद(पूर्व अध्यक्ष) को संविधान के अनुच्छेद102(1) और जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 8 के तहत सांसद पद हेतु अयोग्य घोषित किया है।

मुद्दे से संबंधित प्रमुख बिंदु: 

क्या है मानहानि ?

  • किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में किसी कथन को “शब्दों में, लिखित में, चित्रों में या महत्वपूर्ण संकेतों द्वारा प्रकाशित करना”, जिस कारण उस व्यक्ति के प्रति अन्य लोगों के मन में घृणा, उपहास, अपमान का भाव पैदा हो जाए और उसके मान-सम्मान को क्षति पहुंचे, तब उसे मानहानि कहा जाता है|
  • मानहानि में ऐसे अपमानजनक शब्दों एंव भाषण का उपयोग किया जाता है, जिन शब्दों एंव भाषण से व्यक्ति विशेष के प्रति समाज में घृणा या अपमान उत्पन्न हो जाता है और उसकी गरिमा को चोट पहुंचती है|
  • भारत में मानहानि एक सिविल दोष और आपराधिक कार्यदोनों हो सकते हैं और इसका अंतर इनके द्वारा प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्यों में अंतर्निहित होता है। 
  • सिविल दोष के अंतर्गत मुआवजेके माध्यम से क्षतिपूर्ति की जाती है और कार्यमें सुधार का प्रयास किया जाता है और वहीं मानहानि के आपराधिक मामलों में किसी गलत कार्य के लिएअपराधी को दंडित किया जाता है।

मानहानि से संबंधित प्रमुखप्रावधान:

  • भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 में मानहानि के लिए साधारण कारावास का प्रावधान है, जिसमेंदो साल कीसजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अनुसार, निम्नलिखितआधारों पर मानहानि का मामला हो सकता है; 
  • जो कोई भी बोले गए या पढ़े जाने के आशय से शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य द्वारा यह जानते हुए कि ऐसे लांछन से उस व्यक्ति की ख्याति को क्षति पहुँच सकती है फिर भी ऐसे कार्यकरता है, तो परिणामस्वरूप अपवादित दशाओं के सिवाय उसके द्वारा उस व्यक्ति की मानहानि करना कहलाएगा। 
  • हालांकि,धारा 499 के अनुसार, सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिएहो तो इसे मानहानि नहीं माना जाएगा। 

मानहानि से संबंधित पूर्व निर्णय:

  • महेंद्र राम वनाम हरनंदन प्रसाद (1958): वादी को उर्दू में लिखा पत्र भेजा गया था। इसलिये उन्हें इसे पढ़ने हेतु किसी अन्य व्यक्ति की आवश्यकता थी। इस संदर्भ में यह माना गया कि चूँकि प्रतिवादी जानता था कि वादी उर्दू नहीं जानता है और उसे सहायता की आवश्यकता होगी, इसलिये प्रतिवादी का कार्य मानहानि के समान है।
  • राम जेठमलानी वनाम सुब्रमण्यम स्वामी (2006): दिल्ली उच्च न्यायालय ने डॉ. स्वामी को यह कहकर राम जेठमलानी की मानहानि करने हेतु दोषी ठहराया कि उन्होंने तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री को राजीव गांधी की हत्या के मामले से बचाने हेतु एक प्रतिबंधित संगठन से धन प्राप्त किया था।
  • श्रेया सिंघल वनाम भारत संघ (2015): यह इंटरनेट मानहानि के संबंध में एक ऐतिहासिक निर्णय है। इसने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की असंवैधानिक धारा 66A को शामिल किया, जो संचार सेवाओं के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश भेजने हेतु दंडित करती है।

सांसदोंकी अयोग्यता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • सांसदों की अयोग्यता से संबंधित प्रावधानों का वर्णन तीन अलग-अलगकानूनों में वर्णित है:

प्रथम कानून 

  • संसद के सदस्य और विधान सभा के सदस्य की अयोग्यता से संबंधित प्रावधान अनुच्छेद 102(1) और 191(1) में वर्णित हैं ।
  • एक सांसद और विधायक की अयोग्यता तीन स्थितियों के आधार पर  भीनिर्धारित होती हैं; जैसे- 
  • लाभ का पद धारण करना,
  • दिमागी रूप से अस्वस्थ होना या दिवालिया होना, 
  • वैध नागरिकता का न होना। 

द्वितीय कानून 

  • अयोग्यता से संबंधित कुछ प्रावधान संविधान की दसवीं अनुसूची में वर्णित हैं, इसमेंदल-बदलकेआधारपरसांसदों और विधायकों की अयोग्यता का प्रावधान शामिल है।

तृतीय कानून  

अयोग्यता के बारे में कुछ प्रावधान जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 1951 में वर्णित हैं।

  • यह कानून आपराधिक मामलों में सजा के लिए अयोग्यता का प्रावधान करता है।

जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 

  • जन-प्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 8 दोषी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकती है।परन्तु ऐसे व्यक्ति जिन पर केवल मुक़दमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं, चाहे उन पर लगा आरोप कितना भी गंभीर हो।
  • जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(1) और (2) के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई सदस्य (सांसद अथवा विधायक) अस्पृश्यता, हत्या, बलात्कार, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा करना, भारतीय संविधान का अपमान करना, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करना, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना जैसे अपराधों में लिप्त होता है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा तथा 6 वर्ष की अवधि के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
  • जनप्रतिनिधिअधिनियमकीधारा8(3) के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई सदस्य उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिये दोषी साबित किया जाता है तथा उसे न्यूनतम दो वर्ष से अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से आयोग्य माना जाएगा तथा ऐसे व्यक्ति को सजा समाप्त होने की तिथि के बाद 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य माना जाएगा।
  • धारा 9भ्रष्टाचार या निष्ठाहीनता के लिए बर्खास्तगी के लिए अयोग्यता से संबंधित है।
  • धारा 10चुनाव खर्च का लेखा-जोखा दर्ज करने में विफल रहने पर अयोग्यता से संबंधित है। 
  • धारा 11भ्रष्ट आचरण के लिए अयोग्यता से संबंधित है।

जनप्रतिनिधि अधिनियम में संशोधन

  • जनप्रतिनिधि अधिनियमके तहत, धारा 8(4) में कहा गया है कि दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्यता केवल "तीन महीने बीत जाने के बाद" प्रभावी होती है। उस अवधि के भीतर, सांसदऔर विधायक उच्च न्यायालय के समक्ष सजा के खिलाफ अपील दायर कर सकते थे।
  • हालांकि, 2013 में 'लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' के ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने आरपीए की धारा 8 (4) को असंवैधानिक करार दिया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिली थॉमस बनाम भारत संघ के मामले में निर्णय दिया था कि कोई भी संसद सदस्य, विधान सभा का सदस्य या विधान परिषद का सदस्य जिसे किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और न्यूनतम दो साल के कारावास की सजा दी जाती है, तो वह तत्काल प्रभाव से सदन की सदस्यता खो देता है।
  • वर्ष 2018 में 'लोक प्रहरी बनाम भारत संघ' के एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अयोग्यता "अपीलीय अदालत द्वारा दोषसिद्धि पर रोक की तारीख से लागू नहीं होगी।"

निष्कर्ष:

  • मानहानि कानून का प्रावधान संविधान निर्माताओंद्वारादेश में लोगों केसम्मान तथा उनकी गरिमा को बनाए रखने के लिए किया गया था नकि दुर्भावनापूर्ण इरादे से किसी व्यक्ति को बदनाम करने तथाराजनीतिक हितोंकी पूर्ति करने के लिए।
  • अपवाद के तौर पर देखा जाए तो मानहानि कानून लोगोंकीअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर भीप्रतिबंध लगाताहै। इसलिएकोर्ट द्वारा विशेष परिस्थितियोंमेंहीइस कानून के तहत निर्णय देना चाहिए।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारत में सांसदों की अयोग्यता और मानहानि कानून से संबंधित प्रमुख प्रावधानों की विवेचना कीजिए।