उत्तर भारत में तीव्र भूकम्प की आशंका

उत्तर भारत में तीव्र भूकम्प की आशंका

प्रिलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:

भूकम्प, भूकम्प जोन, रिक्टर पैमाने, नेशनल सेंटर आफ सिस्मोलाजी (एनसीएस), ‘इंडियन प्लेट’

मेन्स के लिए महत्वपूर्ण:

जीएस-1: उत्तर भारत में भूकम्प की आशंका,कारण, प्रभाव, भारत के भूकम्प जोन

20 अक्टूबर,2023

सन्दर्भ:

हालिया सर्वेक्षण से भूगर्भ वैज्ञानिकों ने उत्तर भारत में तीव्र भूकम्प आने की आशंका जता चुके हैं।

उत्तर भारत में भूकम्प की आशंका:

  • भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार, भूकम्प के छोटे-छोटे झटके किसी बड़े भूकम्प का संकेत हो सकते हैं। कई विशेषज्ञ दिल्ली से बिहार के बीच 7.5 से 8.5 तीव्रता के बड़े भूकम्प की आशंका जता चुके हैं। दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में तो भूकम्प के झटके बार-बार लगते रहे हैं क्या दिल्ली की ऊंची-ऊंची आलीशान इमारतें किसी बड़े भूकम्प को सहने की स्थिति में हैं।
  • पश्चिमी अफगानिस्तान में 8 अक्तूबर,2023 को तीव्र भूकम्प के झटकों से ढाई हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी और कई हजार घायल हो गए। हाल ही में दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश में भी भूकम्प के जोरदार झटके महसूस किए गए थे, जिसका केंद्र नेपाल के बझांग जिले में था। इस भूकम्प का प्रभाव उत्तर भारत में एक दिन में लगातार दो बार महसूस किया गया था।
  • 3 अक्तूबर को रिक्टर पैमाने पर 4.6 तीव्रता का पहला भूकम्प और 6.2 तीव्रता का दूसरा भूकम्प महसूस किया गया। हालांकि भारत में इस भूकम्प से जानमाल का कोई नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन इस भूकम्प से नेपाल के बझांग जिले में काफी तबाही हुई, जहां पहाड़ों के सैकड़ों मकान जमींदोज हो गए थे।
  • भूकम्प के निरंतर लग रहे झटकों से यह सवाल लोगों को परेशान कर रहा है कि कहीं अफगानिस्तान से नेपाल और दिल्ली तक भूकम्प के ये झटके किसी बड़ी तबाही का संकेत तो नहीं हैं। इसी साल तुर्किए में भी 7.8 तीव्रता का बेहद शक्तिशाली और विनाशकारी भूकम्प आया था, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी। उस भूकम्प ने तुर्किए की जमीन को भी लगभग तीन मीटर खिसका दिया था।
  • नेशनल सेंटर आफ सिस्मोलाजी (एनसीएस) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में बीस शहरों तथा कस्बों में भूकम्प का खतरा सर्वाधिक है, जिनमें दिल्ली सहित नौ राज्यों की राजधानियां भी शामिल हैं।
  • हिमालयी पर्वत शृंखला क्षेत्र को दुनिया में भूकम्प को लेकर सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है और एनसीएस के एक अध्ययन के अनुसार भूकम्प के लिहाज से सर्वाधिक संवदेनशील शहर इसी क्षेत्र में बसे हैं।

कारण:

  • भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार, दिल्ली-हरिद्वार वनक्षेत्र में आतंरिक खिंचाव के कारण धरती में बार-बार कम्पन हो रहा है। इन झटकों से पता चलता है कि इस जोन में भू-गर्भीय ‘फाल्ट’ सक्रिय हैं, जिसके कारण उत्तर भारत में एक बड़ा भूकम्प आ सकता है, लेकिन उसका कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता।
  • इंडियन प्लेट’ हिमालय से लेकर अंटार्कटिक तक फैली है, जो हिमालय के दक्षिण में है, जबकि यूरेशियन प्लेट हिमालय के उत्तर में है।

दिल्ली पर इस भूकंप का प्रभाव:

  • कई अध्ययनों से पता चलता है कि 72 फीसद मामलों में हल्के भूकम्प ही बड़े भूकम्पों के लिए उत्तरदायी  रहे हैं। भूकम्प के लिहाज से दिल्ली-एनसीआर काफी संवेदनशील जोन माना जाता है, जो दूसरे सबसे खतरनाक भूकम्प जोन-4 में आता है। एनसीएस के अध्ययन के अनुसार दिल्ली का लगभग 30 फीसद हिस्सा तो जोन-5 में आता है, जो भूकम्प की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील है।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में बनी नई इमारतें 6 से 6.6 तीव्रता के भूकम्प को सहने की क्षमता है जबकि पुरानी इमारतें 5 से 5.5 तीव्रता का भूकम्प ही सह सकती हैं।
  • एनसीएस के एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली की 90 फीसद इमारतें छह तीव्रता से तेज भूकम्प को झेलने में समर्थ नहीं हैं। क्योंकि दिल्ली में ये इमारतें क्रंकीट और सरिया से बने हैं।
  • विशेषज्ञ बड़ा भूकम्प आने पर दिल्ली में जान-माल का ज्यादा नुकसान होने का अनुमान इसलिए भी लगा रहे हैं, क्योंकि दिल्ली की आबादी करीब 1.9 करोड़ है और प्रति वर्ग किलोमीटर में करीब दस हजार लोग रहते हैं। किसी भी बड़े भूकम्प का असर तीन से चार सौ किलोमीटर तक दिखता है।
  • वर्ष 2001 में भुज में आए भूकम्प के कारण वहां से करीब तीन सौ किलोमीटर दूर अहमदाबाद में भी काफी तबाही हुई थी। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस के वैज्ञानिक भी दिल्ली, कानपुर, लखनऊ और उत्तरकाशी के इलाकों में बड़े भूकम्प की चेतावनी दे चुके हैं। उनके मुताबिक लगभग पूरा उत्तर भारत भूकम्प की चपेट में आ सकता है।

भारत के भूकम्प जोन:

  • ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआइएस) द्वारा भूकम्प के लिहाज से भारत के संवेदनशील क्षेत्रों को जोन-2 से जोन-5 में रखा गया है। ‘मैक्रो सेस्मिक जोन मैपिंग’ के अनुसार भूकम्प को मापने के लिए भारत को जोन-5 से जोन-2 तक कुल चार जोनों में बांटा गया है। इनमें जोन-5 सर्वाधिक संवेदनशील और जोन-2 को सबसे कम संवेदनशील माना गया है। जोन-5 ऐसा क्षेत्र होता है, जहां भूकम्प आने की आशंका सर्वाधिक रहती है, जबकि जोन-2 में भूकम्प आने की आशंका सबसे कम होती है।
  • दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों को इस दृष्टि से जोन-4 में रखा गया है, जहां रिक्टर पैमाने पर 7.9 तीव्रता तक का भूकम्प आ सकता है। इस क्षेत्र में दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर-प्रदेश, बिहार, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल का कुछ क्षेत्र आता है।
  • जोन-5 में गुजरात का भुज, जम्मू-कश्मीर का कुछ क्षेत्र, अंडमान निकोबार, उत्तराखंड तथा समस्त पूर्वोत्तर भारत आता है।
  • जोन-3 में उत्तर प्रदेश, बिहार तथा मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों के अलावा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु तथा केरल के कुछ हिस्से आते हैं। रिक्टर पैमाने पर जितनी ज्यादा तीव्रता का भूकम्प आता है, उतना ही ज्यादा कंपन होता है।

तीव्रता के आधार पर भूकम्प का असर: 

  • 2 से 2.9 तीव्रता का भूकम्प आने पर हल्का कंपन होता है, जबकि 3 से 3.9 तीव्रता का भूकम्प आने पर ऐसा लता है, मानो कोई भारी ट्रक नजदीक से गुजरा हो।
  • 4 से 4.9 तीव्रता वाले भूकम्प में खिड़कियों के शीशे टूट और दीवारों पर टंगे फ्रेम गिर सकते हैं। रिक्टर स्केल पर 5 से कम तीव्रता वाले भूकम्पों को हल्का माना जाता है और वर्ष भर में लगभग छह हजार ऐसे भूकम्प आते हैं।
  • 5 से 5.9 तीव्रता के भूकम्प में भारी फर्नीचर भी हिल सकता है और 6 से 6.9 तीव्रता में इमारतों की नींव दरकने से ऊपरी मंजिलों को काफी नुकसान हो सकता है।
  • 7 से 7.9 तीव्रता का भूकम्प आने पर इमारतें गिरने के साथ जमीन के अंदर की पाइपलाइनें भी फट जाती हैं। 8 से 8.9 तीव्रता का भूकम्प आने पर तो इमारतों सहित बड़े-बड़े पुल भी गिर जाते हैं, जबकि 9 तीव्रता का भूकम्प आने पर हर तरफ तबाही तय होती है।

निष्कर्ष:

  • भूकम्प के प्रभावों को देखते हुए हमें संवेदनशील क्षेत्रों में इमारतों को भूकम्प के लिहाज से तैयार करना शुरू कर देना चाहिए, ताकि बड़े भूकम्प के नुकसान को न्यूनतम किया जा सके।
  • एनसीएस के अनुसार, विशेषकर दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में आने वाले भूकम्प के झटकों से घबराने की नहीं, बल्कि जोखिम कम करने के उपायों पर जोर देने की जरूरत है। क्योंकि वैज्ञानिकों द्वारा ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं की गयी है, जिससे भूकम्प आने के समय, स्थिति और तीव्रता की सटीक भविष्यवाणी की जा सके।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

  • उत्तर भारत में भूकम्पों की आशंका को देखते हुए इसके कारण एवं प्रभाव की व्याख्या कीजिए।